आस्तित्व
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जब सच्ची प्रेम भावनाएँ……
दिल की असीम गहराईयों से ….
अस्तित्व के कुएं से ….छलकती हैं ..
तब मुझे लगता हैं रेणुका बहकती हैं |
इक गुलशन ,हसीन ख्वाबों का,इरादों का|
जब कायनात में जन्मता हैं …उभरता हैं .||
सारी सीमाएं,तंग दिल गलिया,छूट जाती हैं|
जब संकल्पित रेणुका ,सृजनको ललकती हैं||
हम इंसानी कठपुतलियां ,अवचेतन डोर में,
सांसो केशोर में ,बंधे हैं ,गुने हैं ,पड़े हैं |
सांसो का संगीत ,मधुर लगने लगे ,तो लगे
ईश्वर तो मन मंदिर में ही खड़े हैं ,जुड़े हैं |
-रेणुका झा
[जों मन में आया लिखा मैं कोई कवियत्री नही हूँ ]फोटो के श्रोत चित्र में अंकित हैं |
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