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शरीर में रसायन बनते हैं ,बहते हैं … एहसासों के अनुसार असर करतें हैं ..

आस्तित्व
आस्तित्व
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जब सच्ची प्रेम भावनाएँ……

दिल की असीम गहराईयों से ….

अस्तित्व के कुएं से ….छलकती हैं ..

तब मुझे लगता हैं रेणुका बहकती  हैं |550458_451976158155436_401795282_n

इक गुलशन ,हसीन ख्वाबों का,इरादों का|

जब कायनात में जन्मता हैं …उभरता हैं .||

सारी सीमाएं,तंग दिल गलिया,छूट जाती हैं|

जब संकल्पित रेणुका  ,सृजनको ललकती  हैं||

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हम इंसानी कठपुतलियां ,अवचेतन डोर में,

सांसो केशोर में ,बंधे हैं ,गुने हैं ,पड़े हैं |

सांसो का संगीत ,मधुर लगने लगे ,तो लगे

ईश्वर तो मन मंदिर में ही खड़े हैं ,जुड़े हैं |

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-रेणुका झा

[जों मन में आया लिखा मैं कोई कवियत्री नही हूँ ]फोटो के श्रोत चित्र में अंकित हैं |

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