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जीवन जीने का नाम |

आस्तित्व
आस्तित्व
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दोस्तों ,नमस्कार |

मेरा बचपन जौनपुर के एक छोटे से गाँव में बीता हैं |बचपन से ही मैं मेधावी और छात्रा रहीं हूँ |मेरे पिता और माता बहुत ही खुले दिल के विनम्र इंसान हैं |

बचपन से ही मैं बाल यौन शोषण की शिकार रहीं हूँ[नजदीकी रिश्तेदार द्वारा] ,यह सब तब तक चलता रहां जब तक मैं १७ की नही हों गयी |और तब यह खत्म हुवा जब मैंने एक दिन ठान ही लिया की ये अब नही होंगा |

यह दौर बड़ा अजीब हैं ,सिनेमा को समाज का दर्पण हैं ,मुझे कभी कभार लगता हैं की पथ-प्रदर्शक हैं सिनेमा समाज का …..जिस्म२,…क्या कूल हैं हम-२,जैसी फिल्मे समाज में सिर्फ व्लात्कार ,हिंसा या घृणित मानसिकता को ही व्यक्त कर सकती हैं …गैंग ऑफ वासेपुर जैसी घटिया दर्जे की फिल्मे …हम किस दिशा में जा रहें हैं |

मैं कालेज में पढ़ाती हूँ ,ज्यादा अंक पाने के लिए वा शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए छात्राओं द्वरा शिक्षकों का विस्तर गर्म करना बड़ी आम बात हों गया हैं |सबसे सेफ तरीका शारीरिक जरूरतों वा मतलब निकालने का ….मैंने देखा हैं ऐसे चरित्रहीन शिक्षक अकेले रूम लेते हैं और ट्यूशन पढाने का धंधा करते हैं जिसके आड़ में यह सब करते हैं |

समाज में शिक्षा का स्वरुप ही बदल गया हैं क्लास रूम में मुन्नी,शीला,जलेबी बाई या फिर हम या हमारी जैसी शिक्षिकाओ के फिगर आज चर्चा के मुख्य विषय हैं |

मैं जिंदगी के सबसे कठिन दौर में हूँ …और  फिर भी आत्मविशवास से भरी हूँ|मैं जिंदगी में नितांत अकेली हूँ कारण यह हैं की मेरे मन में किसी के पास जाने /घुलने मिलने में मेरा अतीत बाधक बनता  हैं …फिर भी इस समाज का एक सक्रिय सदस्या बनना चाहती हूँ …..इसलिए जागरण जक्सन पर आई हूँ |मुझे जों भी समझ में आयेंगा अपनी अभिव्यक्ति मैं जरुर करूंगी मैं कोई साहित्यिक या बड़ी लेखिका नही हूँ ….ना ही आप कोई आशा ही ऐसी रखियेंगा |

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